जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में कोरोना संकट ने मानवीय जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया है। कुछ पक्ष कम प्रभावित हुए हैं एवं कुछ पक्ष ज्यादा परंतु प्रत्येक पक्ष पर इसका कुछ न कुछ प्रभाव हुआ है। शिक्षा जगत पर इसका सीधा एवं व्यापक असर देखा जा सकता है। 15 मार्च से ही देश के स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय बंद हैं। शिक्षण कार्यों को ऑनलाइन माध्यम से संचालित किया जा रहा है। सरकार ने भी इस ओर ध्यान देते हुए पहले से मौजूद ऑनलाइन शिक्षा के प्लेटफ़ॉर्म जैसे स्वयं, ईपीजी पाठशाला, डिजिटल लाइब्रेरी, दीक्षा आदि को उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। सभी शिक्षण संस्थाओं ने कोरोना को एक अवसर के रूप में देखते हुए भी इसे अपना लिया।
लेकिन एक मूल प्रश्न यह है कि क्या ऑनलाइन कक्षा में सबकुछ ठीक चल रहा है! ई-शिक्षा के बढ़ते प्रारूप ने इसकी संरचना ही बदल दी जिसमे वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम शामिल हैं। ई-शिक्षा को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है - सिन्क्रोनस एवं असिन्क्रोनस। भारत में ई-शिक्षा अभी अपने प्रारंभिक अवस्था में है। अब वो कौन कौन सी चुनैतियाँ हैं जिससे शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों प्रभावित हैं। क्या स्कूली शिक्षा से जुड़े कुल 33 करोड़ विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ पा रहे हैं? शिक्षा जगत ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रयास किये हैं परंतु वह पर्याप्त नहीं है। अभी भी बहुत सारी सामान्य या मूल तकनीकी चुनैतियाँ हमारे समक्ष खड़ी है जैसे लिंक का फेल होना, इंटरनेट की स्पीड़, कनेक्टिविटी की समस्या, इंटरनेट पैक के चार्ज को सभी वर्ग द्वारा वहन न कर पाना आदि। प्रोड्योगिकी को लोकतंत्रिक ढांचें में तैयार करना अब एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसमें विभिन्न तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता एवं वितरण उचित रूप से हो सके।
पाठ्यक्रम की असमानता भी एक बड़ी चुनौती है जो ऑनलाइन शिक्षा में बाधा बन रही है। अधिकांश संस्थाएं समय सारणी के उसी स्वरूप को अपना रही हैं जिसे ऑफलाइन कक्षा के लिए तैयार किया गया था। परंतु ऑनलाइन कक्षा में ऑफलाइन सारणी को क्रियान्वित करना शारीरिक एवं मानसिक रूप से शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए चुनौती ही है।
विद्यार्थियों को दिए जाने वाले गृहकार्य या परियोजना को देखे तो ऑनलाइन कक्षा के अलावा उस गृहकार्य को करने के लिए भी विद्यार्थी इंटरनेट या मोबाइल पर अपना समय व्यतीत करता है। इस हिसाब से प्रतिदिन कंप्यूटर या मोबाइल उपयोग करने की औसतन समय में अवांछित वृद्धि हो जा रही है। यह शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से एक प्रतिकूल प्रयोग है। सोशल मीडिया पर साझा करते हुए अभिभावकों ने ये कहा कि उनके बच्चों की दृष्टि शक्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा तकनीक के ज़्यादा उपयोग से अवसाद या अकेलापन जैसी समस्याएं भी पैदा हो रही है।
परंतु सवाल अभी भी वहीं खड़ा है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा एक प्रभावी प्रणाली हो सकती है जो शिक्षक-शिक्षार्थी के आमने-सामने पढ़ाई का विकल्प बन सके? हाल ही में जारी UGC निर्देशों ने भी पेन-कॉपी वाले एग्जाम की वकालत की है। हम सारांश, स्टैन स्कूल, ई- बस्ता, विध्यांजली, स्वयं, स्वयंप्रभा, आदि कार्यक्रमों के माध्यम से डिजिटल भारत के निर्माण के लिए तत्पर हैं। स्किल इंडिया, कैंपस कनेक्ट, नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, ब्लेंडेड लर्निंग, आदि के माध्यम से भारतीय शिक्षा डिजिटल शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। शिक्षा में मानवीय संवेदना संप्रेषित किये बिना शिक्षा निर्धारित उद्देश्य से भटक सकती है। इस दृष्टि में जरूरी यह है कि हम शिक्षा में तकनीकी का संतुलित प्रयोग करते हुए मानवीय तकनीकी जैसे शिक्षण कौशल, संचार कौशल, शोध कौशल तथा प्रबंध आदि जैसे कौशलों का उपयोग करें।
उत्तम
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